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Kato Mood Latkayen कटो मूड़ लटकाएं -बुन्देली लोक कथा

पूतगुलाखरी पटैल के संग बारे ने देखो के एक खबसूरत लुगाई साँकरों सें बंदी है बा गरे में एक Kato Mood Latkayen कटो मूड़ लटकाएं है। ओ लुगाई खों राजा के सिपाई बांदकें ले जा रये हैं। ऐसों जंजाल देखकें ऊ वापस आ गब अर बब्बा सें कई कै मोरो अटका सुरज दें ।

 कटे सिर को गले में लटकाये हुए स्त्री

पटैल बब्बा बोले – काशी में एक गरीब बामन को घर हतो ऊके परवार में ऊकी मतारी जो हाँत खाली हती ओके लरका बहूँ और एक मोंड़ी रैत हते। बेटी को ब्याव कर दओ, अब तीन प्रानी ओ घर में बचेते। एक समय ऊ परवार पै बड़ी विपता आई । वे भूकों मरन लगे । ऐसी मुसीबत देख के लरका अपनी मतारी सें बोलो के अरकऊँ तुम मान जाव तो हम परदेश चले जाँय उतै कछू कामधाम मिल जैहें। मतारी और ऊकी घरवारी ने हाँमी भर दई। जो अपनी तैयारी करकें परेदश खों निकर परो । ओखों उते एक साऊकार के घरे चौकीदारी को काम मिल गओ । वो अपनो काम ईमानदारी से करन लगो ।

एक समय ऐसो भव कै आदीरात खों कछू डाकू आय, वे सब हतयारों से लैस हते उनने आकें साऊकार को सबरो खजानों लूट लओ । ई चौकीदार ने पैलऊँ सोची के इनसे लरें मनो वे जादां हते सो चुपचाप एक तरपै ठाँड़ो होकें सब देखत रओ । उन डाकुओं ने पूरो लूट कौ सामान गाँव के बाहर एक पीपर तरें गाड़ दओ हतो ।

चौकीदार देखत रओ उन डाकुओं के जावे पै जो अपने घरे वापस आ जात है । ईने साऊकार खों जगाव अर खजाने की बात बता दई । साऊकार ने अपनी तिजोरी देखी तो धक्करै गव । ओने चिल्यावो शुरू कर दओ । चौकीदार ने कई सेठ तुम रंज नें करो तुमाव सबरो खजानों उन डाकुओं ने पीपर के नेंचें गाड़ो है। साऊकार उतै गये अर सबरो खजानो उखरवा लओ । वे अपने चौकीदार की ईमानदारी पै प्रसन्न हते । सेठ ने ऊकी ईमानदारी पै खुश होके ऊखों रूपैया असर्फी इनाम में दई ।

इत्तो जादाँ इनाम पाकें बो बामन को लरका साऊकार सें बोलो कै अब हम अपने घरे जावे की मुहलत चाहत हों । साऊकार से मुहलत लैकें वो अपने घर खों चल देत है। चलत-चलत ओने सोची कै बैन से मिलत चलें। वो बैन के घरे चलो गव । ओने बैन खों सब हाल सुना दव अर जा बात सोई बताई कें देखो हमें साऊकार ने इत्तो इनाम दओ है। बैन ने मुहरें, असरफी देखीं तो ओकी नियत खराब हो गई ।

आने आदीरात में अपनेई भैया की घींच काट लई । ओके आदमी खों भुन्सरौँ ओकी करतूत पता चली सो ओने राजा सें अपनी लुगाई की रपोट कर दई। राजा ने ओखों पकरवाकें सजा सुना दई । सजा के पैलें ओखों बाँदकें ओके गरे में अपनेई भैया की घींच लटकवाकें पूरे नगर में घुमवा दओ । पटैल बब्बा बोले- देखो बेटा हमने तुमाव अटका सुरजा दओ ।

कटे सिर को गले में लटकाये हुए स्त्री – भावार्थ 

पूतगुलाखरी नाई जब किसी नगर में दाना-पानी लेने गया तो वहाँ क्या देखता है कि सुन्दर स्त्री जंजीरों में जकड़ी हुई है, उसके गले में एक कटा हुआ सिर लटक रहा है। राजा के सिपाही उसे लेकर जा रहे हैं। इस अजूबे को देखकर वह वापस आ गया और पटेल जी से बोला कि मैं ऐसा अजूबा देखकर आ रहा हूँ, आप या तो मेरा यह अटका सुलझायें, नहीं तो मैं वापिस जा रहा हूँ। पटेल बोले कि मेरी बात ध्यान देकर सुनो

काशीपुरी नामक नगर में एक गरीब ब्राह्मण परिवार रहता था, उस परिवार में एक बूढी माँ उसका बेटा-बहू तथा एक लड़की रहती थी। कुछ समय उपरान्त बेटी का विवाह कर दिया गया, अब उस परिवार में तीन प्राणी शेष थे । एक समय ऐसा आया कि उस परिवार पर मुसीबतें आती गईं, उन्हें भूखों मरने की नौबत आई तो परिवार का मुखिया अर्थात् लड़का अपनी माँ तथा पत्नी से बोला कि हम पर विपत्ति आई है, अगर आप लोग कहें तो मैं परदेश जाकर कोई काम-धंधा करूँ, जिससे हमारी रोजी-रोटी चल सके। उसकी माँ तथा पत्नी की सहमति पर वह परदेश चला जाता है। वहाँ जाकर वह किसी साहूकार के यहाँ पहरेदारी करने लगा।

एक रात वह क्या देखता है कि आधी रात के समय कुछ सशस्त्र लुटेरे आये और वे साहूकार का खजाना लूटकर ले गये । इस लड़के ने सोचा कि मैं इनसे लड़ता हूँ, तो इनकी संख्या ज्यादा है और हथियारों से लैस भी हैं, इसलिए ये मुझे मार डालेंगे । अतः वह चुपचाप उनके पीछे लग जाता है। उसने देखा कि उन लुटेरों ने पूरा धन नगर के बाहर एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया है। यह देखकर वह चुपचाप वापिस आ गया। सुबह साहूकार की नींद खुली।

वह जैसे ही तिजोरी वाले कक्ष में गया तो देखा कि उसकी तिजोरी खाली पड़ी है, यह देखकर वह दहाड़ें मारकर रोने लगा। उसे रोता देख वह चौकीदार वहाँ आया और साहूकार को समझाने लगा कि देखो सेठजी मुझे लुटेरों की सब जानकारी है और आपका धन सुरक्षित है, आप मेरे साथ चलें तो मैं आपको सब कुछ बता देता हूँ।

साहूकार उसके साथ गया तो पीपल के नीचे उसे अपना धन मिल गया । वह अपने चौकीदार से बहुत खुश था, उसने उसे बहुतेरा इनाम अशर्फियाँ आदि दे दीं। वह ब्राह्मण अपना इनाम लेकर वापस अपने घर जाने लगा। उसने सोचा कि बहिन से मिलता चलूँ, अत: वह रात्रि में बहिन के घर रूक जाता है। उसने अपनी बहिन को साहूकार वाली घटना बताई और उसे मिले इनाम के बारे में भी बतलाया ।

उसकी बहिन ने सुना उसकी नियत बदल गई । उसने रात में अपने भाई का गला काट दिया और उसका पूरा रूपया रख लिया। सुबह उसका यह रहस्य किसी तरह से उसका पति जान लेता है, उसने राजा के समक्ष जाकर अपनी पत्नी की करतूत सुना दी। राजा ने उसे कठोर दण्ड दिया तथा अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि इस स्त्री को बांधकर, इसके गले में इसी के द्वारा काटे गये अपने भाई के सिर को लटकाकर पूरे नगर में घुमाओ, लोगों को इससे सबक मिलेगा। सो- हे पूतगुलाखरी ! तूने उसी स्त्री को देखा है।

डॉ ओमप्रकाश चौबे का जीवन परिचय 

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