Raja Jagdev Gatha राजा जगदेव गाथा हिन्दी रूपांतरण पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है इस गाथा में राजा जगदेव की आदिशक्ति दुर्गा माता की भक्ति भावना को दर्शाती है जहां देवी जगदेव का शीश दान में मांगती है जगदेव की रानियां थाल सजाकर अपने पति का शीश दान करती हैं देवी मां प्रसन्न होकर उसे जीवित करना चाहती हैं तो जगदेव की रानियां दिया हुआ दान वापस नहीं लेती तब देवी माता जगदेव को दूसरा शीश प्रदान करती हैं।
भावानुवाद
शंख ध्वनि सुनकर साधु-सन्त जागते हैं । रण भेरी बिगुल की आवाज़ सुनकर योद्धा राजपूतों की बाँहें फड़कने लगती हैं। देवी दुर्गा अपने भक्तों के द्वारा किये जा रहे गुणगान सुनकर जागती हैं, वे अपने एक हाथ में खप्पर तथा दूसरे में त्रिशूल धारण किये रहती हैं।
किस युग में धर्मराज पूज्यनीय हुए तथा किस युग में श्रीराम पूज्यनीय हुए? द्वापर में धर्मराज युधिष्ठिर अपने सत्कर्मों से वंदनीय हुए तथा त्रेता में प्रभु राम अवतरित होकर सबके पूज्यनीय हुए। दुर्गा देवी ने एक समय धर्मराज से पूछा कि आप इस पृथ्वी का आकलन कीजिये । पाण्डुपुत्र ने पृथ्वी का माप करवाया। उनके नाप से दिल्ली शहर के मध्य में वह स्थान आया, उस स्थान पर देवीजी ने अपना मठ बनाने के लिए पाण्डवों से कहा ।
माता का मन्दिर कितने योजन में बना है तथा कितने योजन का विस्तार है ? नौ योजन में भवन बना है तथा दस योजन तक विस्तार है। हे माँ! भुवन के लिए कौन पहाड़ के पत्थर लायेगा तथा कौन ईंट लायेगा ? भीम पत्थर तथा अर्जुन ईंट लायेंगे । आगार शहर के कारीगर बुलाकर देवी के भुवन बनाये गये । जब पूरा मठ बनकर तैयार हो गया तो पाण्डवों ने कहा कि- आप भुवन में बैठिये ।
आदिशक्ति दुर्गा तथा महादेव पाँसे खेलते हैं। किसके पाँसे गुलाबी हैं तथा किसके लाल हैं? माता के पाँसे गुलाबी हैं तथा बाबा महादेव के पाँसे लाल रंग के हैं। शिवजी बोले कि – पाँसे के खेल में आप क्या दाँव लगायेंगी? देवी ने अपना नवल निशान तथा महादेव ने अपना नंदी दाँव पर लगा दिया। देवी ने कहा कि- मुझे तेरह दिन का समय दे दो, मैं तुम्हारे दाँव दूँगी ।
इतना कह देवी अपने हाथ में चन्दन की छड़ी लिये हूलानगर की ओर चली । दुर्गाजी हूलानगर में घूम रही हैं, उनके सिर के केश चारों ओर बिखरे हैं। देवी को इस तरह से जाते देखा तो राजा पृथ्वीपति ने पूछा कि आप बिना सिर ढँके जा रही हैं? देवी ने कहा कि- तेरे नगर में ऐसा कौन, जिससे मैं पर्दा करूँ? हाँ, अगर राजा जगदेव आये होते तो मैं अपने सिर पर आँचल डाल लेती ।
देवीजी के इस तरह के वचन सुनकर पृथ्वीपति बोले कि – जगदेव आपको दान में जो कुछ भी देगा, मैं उससे चौगुना दान दूँगा। जगदेव एक-दो घोड़े देंगे तो मैं सारी घुड़सार ही दे दूँगा, जगदेव यदि हाथी देंगे तो मैं पूरी हथसार दे दूँगा, जगदेव कुछ मोहरें देंगे तो मैं पूरी टकसाल दे दूँगा, जगदेव एक-दो बकरे देंगे तो मैं पूरी हेड़ दूँगा, जगदेव एक-दो गाय देंगे तो मैं पूरी गऊशाला दान कर दूँगा, जगदेव एक-दो गाँव देंगे तो मैं पूरी जागीर दे दूँगा ।
इतना सुनकर देवी बोली कि – पृथ्वीपति! जो कुछ जगदेव दे सकते हैं, वह तुम नहीं दे सकते। इतनी बात हो जाने के पश्चात् देवी चली जाती है। देवी जगदेव के दरबार की तरफ चलीं । उन्हें आया देखकर राजा की सभा हड़बड़ाकर उठ बैठी। राजा ने उनका स्वागत सत्कार किया, उनके चरण स्पर्श किये तथा उन्हें बैठने हेतु चन्दन की चौकी डाली। शीतल जल से उनके पैर धुलाये । बैठने के पश्चात् जगदेव ने जगदम्बे से आने का कारण पूछा। देवी बोली कि तुमने बारह वर्षों से मेरा दान नहीं दिया, सो मैं दान लेने आई हूँ।
जगदेव ने सुना तो भीतर जाकर अपनी रानियों से मशविरा करने लगे, मेरे घर मेरी माँ आई है, उन्हें क्या दान दें? रानियों ने कहा कि- आप अपना घोड़ा तथा हार दान में दे दो। रानियाँ भी अशर्फियाँ लेकर देवी के समक्ष हाज़िर हुईं। देवी ने उन्हें आया देखा तो वे बोलीं कि – हम दूसरा कोई भी दान नहीं लेंगे, हम तो केवल शीश का दान ही लेंगे। राजा ने पुन: विचार किया। रानियों ने कहा कि- जो दान माता माँगें, वह दीजिये ।
राजा स्नान करने चले गये । तत्पश्चात् माथे में चन्दन लगाया, पूजास्थल जाकर तलवार से अपना शीश काट लिया तथा रानियों ने थाल में शीश रख लिया, थाल के ऊपर वस्त्र ढँक दिया। रानियों ने देवी के समक्ष थाल रखकर कहा- माँ ! यह आपका दान है। देवीजी ने कहा कि- मैं इस तरह से दान नहीं लूंगी, क्योंकि तुम्हारे चेहरे पर उदासी छायी है।
मेरी थोड़ी सम्पत्ति है जो भले ही घट जाये, लेकिन हमारे पति का नाम अमर रहे। देवी बोली कि- यदि पाँच पाण्डव होते तो मैं कुड़वार भर लेती। देवी ने कहा कि- जगदेव के शीश में जो मक्खी आ रही हैं, उन्हें भगा देना । वहाँ से प्रसन्न होकर नृत्य करती हुईं सीधे पृथ्वीपति के दरबार में पहुँच गईं। पृथ्वीपति से बोलीं कि – हमारे दान दो ।
सुनते ही राजा भाग खड़े हुए, भीतर छिप गये और किवाड़ बन्द कर लिये । देवी बोलीं कि – अरे बड़बोले ! तेरे देश में सूखा पड़ेगा तथा अकाल पड़ेगा। देवी लौटकर राजा जगदेव के दरबार में पहुँचीं । राजा जगदेव की रानी से बोलीं- अरी जगदेव की दुल्हन ! सुनो, जगदेव के धड़ से सिर मिला दो । रानी बोली कि – दिया हुआ दान हम वापस नहीं लेंगे, अब वह हमारे किस काम का?
देवी ने जगदेव के सिर को आकाश में फेंक दिया, वह नारियल का वृक्ष हो गया तथा जगदेव को नया शीश प्रदान किया। उन्होंने हाथ जोड़कर देवी को प्रणाम किया । हे माँ! जगदेव आपकी स्तुति करता है, छोड़कर कहाँ जा सकता है ?
किसने पृथ्वी की रचना की ? किसने संसार रचा ? किसने पाण्डवों को बनाया? ब्रह्माजी जो सृष्टि के रचनाकार हैं, उन्होंने पृथ्वी बनायी, यह संसार रचा। देवी ने पाण्डवों को बनाया। पृथ्वी किस उद्देश्य से बनायी गयी ? यह संसार क्यों बना? पाण्डवों को किस उद्देश्य से बनाया? पृथ्वी जीव-जगत् के निवास हेतु बनायी गयी ।
अन्याय, अधर्म पर विजय पाने हेतु पाण्डवों का जन्म हुआ। किसने आम, नीम, महुआ, गुलदाख, बेला, चमेली, केवड़ा, चम्पा आदि लगाये? माली ने आम, नीम, महुआ, गुलदाख, बेला, चमेली, केवड़ा, चम्पा, नारियल आदि लगाये, जिनके फूलों की महक से भौरे गुंजन करते हैं। किसने तालाब खुदवाये, उनमें कौन स्नान करते हैं, कौन पानी पीते हैं? जगदेव राजा के दरबार में अमन-चैन था, प्रजा सुखी थी, उनका न्याय प्रसिद्ध था, वे प्रजा को अपने परिवार की तरह स्नेह करते थे ।
एक समय किसी दुश्मन ने अकबर बादशाह के यहाँ जाकर जगदेव की चुगली कर दी, कहा कि- जगदेव बड़ा घमण्डी है, वह आपके बुलाने पर नहीं आता तथा आपसे वैमनस्य रखता है। कई तरह की चुगली बादशाह से कर दीं । बादशाह तो कानों के कच्चे होते हैं, उन्होंने आदेश दिया कि- फौजें तैयार करो तथा जगदेव पर चढ़ाई की जाये ।
आक्रमण के लिए एक लाख कुँवर, दो लाख पठान तैयार हुए, साथ में सारी मुगलिया फौज सजायी गयी। साथ में दिल्ली के ‘सुल्तान भी लड़ाई को आये। फौजों को कूच का आदेश दे दिया गया। सारे सैनिक, कुँवर, पठान, मुगलिया फौज दिल्ली के सुल्तान सहित सतलज नदी के घाट तक आ गये । फौजें बड़ी रंग-बिरंगी सजी हैं, घोड़ों पर नीले रंग की बाग है, हाथियों पर रंग-बिरंगे झण्डे लगे हैं, फौजियों के सिर पर कलंगीदार पगड़ी है।
ये समस्त फौजें जगदेव के द्वारा लगवाये बाग- -बगीचे, पेड़-पौधे काटने लगे, ताल – समुद्र को भी पाटने लगे। इस तरह अत्याचार, अनाचार करने के बाद अकबर ने जगदेव के नाम एक पत्र लिखवाया। उसमें यह लिखा था कि- हम फौज लेकर तुमसे युद्ध करने आये हैं या तो अपनी बेटी मुझसे ब्याह दो या फिर हार मान लो । यह पत्र जगदेव के दरबार में पहुँचा दिया गया। पत्र को पढ़ते ही जगदेव को मूर्च्छा आ गई, सारी सभा में मुर्दानी छा गई।
जगदेव की माता ने हाल देखा तो वे बोलीं कि बेटा तो अकेला ही है, अब क्या होगा? इससे अच्छा तो मैं बाँझ रहती। धरती! तू फट जा, जिसमें जगदेव समा जाये ! राजा जगदेव की बेटी कहने लगी कि- हे पिता महाराज ! आप चिन्ता न करें, न ही दुखी होंवे, आप मुझे मुगलों में भेज दें तथा आप निश्चिंत होकर अपना राज्य करें।
बेटी की बात सुनकर जगदेव बोले- बेटी ! इस तरह के विचार मन में मत लाओ, न ऐसा सोचो! ऐसे में क्षत्रिय धर्म नष्ट होता है। मैं तो तेरा विवाह राजपूत राजकुमार से ही करूँगा, मैं तुम्हारा कन्यादान लूँगा । अरे! मैं इन लाखों की संख्या वाली सेना से नहीं डरता, मैं कुँवर, पठान, मुगलिया फौज तथा दिल्ली सुल्तान तक को मारूँगा ।
वहाँ से राजा जगदेव अपनी आदिशक्ति माँ जगदम्बे के पूजन हेतु जाते हैं । वे देवी के मठ को पूजन का थाल तथा जल आदि लेकर चले। मठ में जाकर देवीजी का पूजन किया तथा विनती की । हे माँ! मुझे इस संकट से उबार लो, आपके सिवा मेरा कौन है इस दुनिया में। माँ ! तू तो सब जानती है।
राजा जगदेव के साथ उनकी रानी भी देवी पूजन को आयीं, वो एक हाथ में मोतियों से भरा थाल लिये हैं, दूसरे पूजन के लिए जल से भरा लोटा, होम के लिए अग्नि तथा समस्त सामग्री लेकर देवीजी के समक्ष आ गयीं। देवी बोली कि रानी ! तुम पर ऐसी कौन-सी मुसीबत आ गई, क्या किसी पड़ोसी राजा ने तुम्हारी सरहद दबा ली या किसी देश के राजा से बैर हो गया, ऐसी कौन-सी मुसीबत तुम पर आ गई?
रानी बोली कि – न कोई मुसीबत आई, न किसी से बैर हुआ, राजा का थोड़ा-सा कार्य है जिसके लिए मैं आपके द्वार आई हूँ । तेरा पखवंदिया काहे का बना है, काहे की झाँज बनी है, काहे का रंगचुलना है तथा हार किसका बना है?
चाँदी का पखवंदिया, सोने की झाँज, रेशम के वस्त्र तथा फूलों का हार बना है। ये समस्त वस्तुएँ देवी पूजन के साथ चढ़ाई जाती हैं। पखवंदिया देवी का हिंडोलना होता है, रंगचुलना देवी का वस्त्र कौन ये समस्त सामग्री लायेगा ? बढ़ई पखवंदिया, स्वर्णकार झाँज, दस्तकार रंगचुलना तथा माली हार लायेगा, जो कि आपके गले में शोभायमान होगा।
कौन ये सामग्री प्रदान करेगा? लँगड़े पखवंदिया बाँधेंगे, वीर हनुमान झाँज, देवीजी रंगचुलना ओढ़ेंगी तथा वे ही हार पहनेंगी, जो उनके गले में शोभायमान होगा। देवीजी के पूजन में मलयागिरि के चन्दन का टीका लगाया। पहली टिकली बासुकि को, दूसरी इन्द्र को, तीसरी दुर्गाजी को । चन्दन, अक्षत् लगाने, पूजन करने के उपरान्त हाथ जोड़कर जगदेव दम्पत्ति देवीजी के समक्ष खड़े हैं ।
हे माँ! आज तू मेरी रक्षा कर, तू मेरे साथ युद्ध का प्रतिनिधित्व कर । (इस समय जगदेव चूँकि युद्ध को जा रहे हैं, अत: उनके राज्य का कार्य उनकी रानी जगता को करना है, इसलिए अब रानी जगता का आदेश होगा।) जगदेव युद्ध को जा रहे हैं, बायें हाथ में बर्छा, दाहिने में ढाल-तलवार तथा कमान ले ली। उनके साथ में लँगड़े तथा वीर हनुमान हैं ।
जगदेव अपने महल से नीचे उतरे, वे नीली घोड़ी पर सवार हुए, वे केसरिया बाना पहने हैं तथा सिर पर बैजनी पाग बाँधे हैं, माथे पर चन्दन लगा है। समस्त योद्धा युद्धक्षेत्र में पहुँच गये। घनघोर युद्ध हो रहा है। बायीं तरफ से लंगड़े लड़ रहे हैं, दाहिनी ओर हनुमान हैं तथा सामने आदिशक्ति दुर्गाजी त्रिशूलों से दुश्मनों का संहार कर रही हैं। इतना ज़्यादा नरसंहार हुआ कि युद्धक्षेत्र में ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कि किसान ज्वार के भुट्टे बड़ी मुस्तैदी से काट रहा है। मुगलों ने इस तरह का घमासान युद्ध देखा तो कुछेक युद्ध के मैदान से भागने लगे ।
युद्ध में कितने कौरवा, कितने पठान, कितनी मुगल फौजें, कितने गुर्जर परिहार मारे गये ? युद्ध एक लाख कौरवा, दो लाख पठान, मुगलिया फौजें तथा असंख्य गुर्जर परिहार मारे गये, दिल्ली का किला तथा दिल्ली के सुल्तान को भी पराजित कर दिया गया। हे माँ! हम तो आपके ही गुणगान करते हैं, आप सबकी रक्षा करें। आपकी जय हो, जय हो, जय हो।
शोध एवं शब्द विन्यास – डॉ. ओमप्रकाश चौबे
adbhut lekhan.