Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारPrabhudayal Shrivastava प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Prabhudayal Shrivastava प्रभुदयाल श्रीवास्तव

श्री प्रभुदयाल श्रीवास्तव जन्म स्थान 4 अगस्त 1944 धरमपुरा दमोह मध्य प्रदेश में हुआ । आपके पिता का नाम  स्वर्गीय श्री राम सहाय श्रीवास्तव । Prabhudayal Shrivastava पेशे से इंजीनियर चार दशकों से कहानियाँ, कवितायें व्यंग्य, लघु कथाएँ लेख, बुंदेली लोकगीत, बुंदेली लघु कथाएँ, बुंदेली गज़लों का लेखन कर रहे हैं। देश की विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। बच्चों तक सुलभ पहुँच हो इस उद्देश्य से  बाल साहित्य वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित।  

अब तक 41 पाठ्य पुस्तकों में रचनाएँ बाल गीत/कहानियाँ/नाटक शामिल हैं ।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव की रचनायें  
दूसरी लाइन  (व्यंग्य संग्रह)
बच्चे सरकार चलायेंगे (बाल गीत संग्रह)
शाला है अनमोल खजाना (बाल गीत संग्रह)
बचपन गीत सुनाता चल (बाल गीत संग्रह)

सम्मान
राष्ट्रीय राज भाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा “भारती रत्न” एवं “भारती भूषण सम्मान”
वैदिक क्रांति देहरादून द्वारा “श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान
हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा “लाइफ एचीवमेंट एवार्ड”
भारतीय राष्ट्र भाषा सम्मेलन झाँसी द्वारा “हिंदी सेवी सम्मान”
शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम, होशंगाबाद द्वारा “व्यंग्य वैभव सम्मान”
युग साहित्य मानस गुन्तकुल आंध्रप्रदेश द्वारा “काव्य सम्मान” से अलंकृत किया गया है।

जंगल के सारे पेड़ों ने,
डोंडी ऐसी पिटवा दी है।
बरगद‌ की बेटी पत्तल की,
कल दोना जी से शादी है।

पहले तो दोनों प्रणय-युगल,
बट के नीचे फेरे लेंगे।
संपूर्ण व्यवस्था भोजन की,
पीपलजी ने करवा दी है।

जंगल के सारे वृक्ष लता,
फल-फूल सभी आमंत्रित हैं।
खाने-पीने हँसने गाने,
की पूर्ण यहाँ आज़ादी है।

रीमिक्स सांग के साथ यहां,
सब बाल डांस कर सकते हैं।
टेसू का रंग महुये का रस,
पीने की छूट करा दी है।

यह आमंत्रण में साफ़ लिखा,
परिवार सहित सब आयेंगे।
उल्लंघन दंडनीय होगा,
यह बात साफ़ बतला दी है।

वन प्रांतर का पौधा-पौधा,
अपनी रक्षा का प्रण लेगा।
इंसानों के जंगल-प्रवेश,
पर पाबंदी लगवा दी है।

यदि आदेशों के पालन में,
इंसानों ने मनमानी की।
फ़तवा जारी होगा उन पर‌,
यह‌ बात‌ साफ़ जतला दी है।

स्वाद शहद-सा मीठा जी

मुँह में बार-बार दे लेते,
भैयनलाल अँगूठा जी।

अभी-अभी था मुंह से खींचा,
था गीला तो साफ किया।
पहले तो डाँटा था मां ने,
फिर बोली जा माफ किया।
अब बेटे मुँह में मत देना,
गन्दा-गन्दा जूठा जी।

चुलबुल नटखट भैयन को पर,
मजा अँगूठे में आता।
लाख निकालो मुँह से बाहर,
फिर-फिर से भीतर जाता।
झूठ मूठ गुस्सा हो मां ने,
एक बार फिर खींचा जी।

अब तो मचले, रोए भैयन,
माँ ने की हुड़कातानी।
रोका क्यों मस्ती करने से,
क्यों रोका मनमानी से।
रोकर बोले चखो अँगूठा,
स्वाद शहद से मीठा जी।

करतब सूरज-चंदा के
मिलता चाँद चवन्नी में है,
और अठन्नी में सूरज माँ।
माँ यह बिलकुल सत्य बात है।
नहीं कहीं इसमें अचरज माँ।

कल बांदकपुर के मेले में,
मैंने एक जलेबी खाई।
बिलकुल चांद सरीखी थी वह,
एक चवन्नी में ही आई।
खाने में तो मजा आ गया,
कितना आया मत पूछो माँ।

और इमरती गोल गोल माँ,
सूरज जैसी सुर्ख लाल थी।
अहा स्वाद में री प्यारी माँ,
कितनी अदभुत क्या कमाल थी।
एक अठन्नी भूली बिसरी,
सच में थी उसकी कीमत माँ।

किंतु चवन्नी और अठन्नी,
अब तो सपनों की बातें हैं।
पर सूरज चंदा से अब भी,
होती मुफ्त मुलाकातें हैं।
कितने लोक लुभावन होते,
इन दोनों के हैं करतब माँ।

जब आती है पूरन मासी,
सोचा करता क्या क्या कर लूँ।
किसी बड़े बरतन को लाकर‌,
स्वच्छ चांदनी उसमें भर लूँ।
किंतु हठीला चांद हुआ ना,
कहीं कभी इस पर सहमत माँ।

सूरज ने भी दिन भर तपकर,
ढेर धरा पर स्वर्ण बिखेरा।
किंतु शाम को जाते जाते,
खुद लूटा बन गया लुटेरा।
इस युग की तो बात निराली,
नहीं बचा है जग में सच माँ।

श्री जगदीश किंजल्क का जीवन परिचय 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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