बुंदेलखंड के महान गणितज्ञ पद्मश्री प्रो० राधाचरण गुप्ता हैं ‘आधुनिक आर्यभट्ट’
बुंदेलखंड की पावन धरा पर महान गणितज्ञ पद्मश्री राधाचरण गुप्ता Padmshri Radhacharan Gupta का जन्म वीरभूमि झाँसी में सन 1935 में श्रावण पूर्णिमा – रक्षाबंधन के दिन साधारण वैश्य परिवार में हुआ था। इनकी माताजी श्रीमती बिनो गुप्ता और पिताजी श्री छोटेलाल गुप्ता थे। इनके पिता मुनीम / मुंशी का काम करते थे। इन्हें घर पर परिवार के लोग प्यार से ‘ पुनू ‘ कहकर पुकारते थे।
राधाचरण गुप्ता की प्रारम्भिक शिक्षा – दीक्षा झाँसी में ही हुई। इन्होंने सन 1881 में स्थापित झाँसी के प्रतिष्ठित विद्यालय बिपिन बिहारी इंटर कॉलेज से सन 1953 में इंटरमीडिएट की परीक्षा भौतिकी, गणित और रसायनशास्त्र में उत्कृष्टता के साथ उत्तीर्ण की। उन दिनों झाँसी बुंदेलखंड में विज्ञान में उच्च शिक्षा प्रदान करने हेतु कोई डिग्री कॉलेज या विश्वविद्यालय नहीं होने के कारण उच्च शिक्षा हेतु ये लखनऊ चले गए।
जहाँ इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से सन 1955 में विज्ञान स्नातक (बी.एस.सी.) और सन 1957 में विज्ञान परास्नातक – गणित (एम.एस.सी. – गणित) की उपाधि अर्जित की। राधाचरण गुप्ता जी बी.एस.सी. में लखनऊ यूनिवर्सिटी के सुभाष हॉस्टल में और एम.एस.सी. में तिलक हॉस्टल में रहे।
जब Padmshri Radhacharan Gupta जी बीएससी प्रथम वर्ष में पढ़ रहे थे तब इनका विवाह 12 दिसम्बर 1953 को सावित्री देवी गुप्ता के साथ हुआ। इनकी तीन संताने पैदा हुईं। बड़ी बेटी आभा गुप्ता, मंजला बेटा रविन्द्र गुप्ता और छोटी बेटी ज्योति गुप्ता।
राधाचरण गुप्ता जी के पहली बार दर्शन करने का हमें सौभाग्य 29 जुलाई 2022 को बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के गाँधी सभागार में मंडलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पांडेय जी के निर्देशन में गठित ‘पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड सोसायटी, झाँसी‘ द्वारा आयोजित उनके सम्मान समारोह ‘ पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड / बुंदेलखंड के मोती – प्रो० राधाचरण गुप्ता, महान गणितज्ञ’ में मिला।
इस समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व मण्डलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पाण्डेय जी ने अपने संबोधन में कहा था – ” प्रो. राधाचरण गुप्ता बुंदेलखंड के मोती हैं। वे बुंदेलखंड की अमूल्य धरोहर हैं, जिन्होंने अपना सारा जीवन गणित के इतिहास पर शोध करने में लगा दिया। 500 से अधिक रिसर्च पेपर और 80 से अधिक किताबें लिखीं। अपने शोध से भारतीय – वैदिक गणित को दुनिया में फिर से प्रतिस्थापित किया और गणित के महत्त्व को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया।
प्रो. राधाचरण गुप्ता के शिक्षा के लिए दिए योगदान का ही नतीजा है कि आईआईटी बॉम्बे द्वारा उनका जन्मदिवस मनाया जाता है। यह सम्मान कुछ ही लोगों को प्राप्त होता है। ऐसे प्रतिभावान व्यक्तित्व को हम ‘प्रथम बुंदेलखंड का मोती सम्मान‘ देकर गर्व महसूस कर रहे हैं। धन्य हो बुंदेलभूमि जिसने ऐसे सपूत को जन्म दिया। “
सम्मान समारोह में प्रो. राधाचरण गुप्ता जी अपनी पत्नी सावित्री देवी गुप्ता के साथ पधारे थे। वो हमें सच्चे तपस्वी नजर आए। वो अन्य वैज्ञानिकों – प्रोफेसरों की तरह सूट – बूट नहीं पहने थे। वे सादा सफेद कुर्ता – पैंट और चप्पल पहने थे। उनका सादा जीवन – उच्च विचार देखकर सभी बहुत प्रभावित हुए। प्रो. राधाचरण गुप्ता जी को उनके गणित के इतिहास में अनोखे योगदान हेतु ‘आधुनिक आर्यभट्ट‘ और ‘बुंदेलखंड के रामानुजन‘ की उपमा देते हैं।
प्रो. राधाचरण गुप्ता अभी 88 साल के हो गए हैं और झाँसी के सीपरी बाजार इलाके में रसबिहार कॉलोनी में निजनिवास पर रहते हुए आज भी दुनिया की चकाचौंध से दूर किताबों की दुनिया में डूबे रहते हैं और गणित के नए – नए तथ्यों और सिद्धांतों की खोज करने में लगे हुए हैं।
भावना जर्नल में अक्टूबर 2019 को प्रकाशित सी० एस० अरविंद को दिए गए साक्षात्कार में प्रो. राधाचरण गुप्ता जी ने अपने जीवन के कई तथ्यों को साझा किया जिनमें से एक तथ्य है कि वो बचपन में लक्ष्मी व्यायाम मंदिर झाँसी में आर. एस. एस. (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की शाखा में जाते थे और नियमित व्यायाम करते थे। यहाँ इन्होंने व्यायाम विशारद की परीक्षा उत्तीर्ण की और मल्लखंभ, जिम्नास्टिक जैसे खेलों की अभ्यास किया और फिर लखनऊ विश्वविद्यालय में जिम्नास्टिक चैम्पियन और स्पोर्ट्स सिल्वर जुबली 1955 – 56 के लिए कप्तान भी रहे।
प्रो. राधाचरण गुप्ता जी ने एमएससी करने के बाद लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज में एक साल अस्थायी प्रवक्ता के तौर पर गणित पढ़ाई और फिर उसके बाद सन 1958 में उन्हें बीआईटी (बिडला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), मेसरा, राँची (झारखंड) में नौकरी मिल गई। जहाँ इन्होंने सन 1958 से 1961 तक वरिष्ठ प्रवक्ता, सन 1961 से 1976 तक असिस्टेंट प्रोफेसर, सन 1976 से 1982 तक एसोसिएट प्रोफेसर और सन 1982 से 1995 तक प्रोफेसर के तौर पर सेवाएँ दीं। यहाँ इन्हें सन 1979 से 1995 तक विज्ञान का इतिहास अनुसन्धान केंद्र का प्रभारी प्राध्यापक ( प्रोफेसर इन चार्ज, रिसर्च सेंटर फॉर हिस्ट्री ऑफ साइंस) नियुक्त किया गया।
प्रो. राधाचरण गुप्ता सन 1973 में अमेरिकन सोसायटी ऑफ मैथमेटिक्स में ‘द मैथमेटिक्स रिव्यू ‘ के रिव्यूवर (समीक्षक) रहे और सन 1980 में यू० कैलगरी, कनाडा के रिसर्च एसोसिएट भी रहे और सन 1982 से 1985 तक एसोसियेशन मैथमेटिक्स टीचर्स ऑफ इंडिया में लोकल कनवेनर टैलेंट कॉम्पटीशन्स भी रहे। वे फरवरी 1995 में विज्ञान के इतिहास के अंतर्राष्ट्रीय अकादमी के संबंधित सदस्य भी बने।
सन1995 में गणित और तर्क के इतिहास के एमेरिटस प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त होकर अपनी जन्मभूमि झाँसी उन्होंने बीआईटी में नौकरी करने के दौरान डाक पत्राचार के माध्यम से ब्रिटिश इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स किया और सन 1971 में राँची विश्वविद्यालय, राँची (झारखण्ड) से प्रो० टी० के० सरस्वती अम्मा के निर्देशन में ‘गणित का इतिहास‘ नामक शोध प्रबंध पर पी०एच०डी० की।
उनका गणित के प्रति असाधारण जुनून है। सन 1969 में प्रो० राधाचरण गुप्ता ने भारतीय गणित में ‘प्रक्षेप’ को संबोधित किया। उन्होंने गोविंदस्वामी और साइन टेबल के प्रक्षेप पर भी लिखा। भारतीय गणित के लगभग सभी पहलुओं और गणित के इतिहास पर उन्होंने लगभग 500 शोधपत्र और 80 किताबें लिखीं। सन 1979 में ‘गणित भारती‘ पत्रिका की स्थापना करके उसका निरन्तर संपादन और प्रकाशन किया। जिसने भारत में गणित के इतिहास पर शोध को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।
सन 1991 में उन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी) का फैलो चुना गया और सन 2009 में उन्हें गणित के इतिहास के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठित सम्मान ” केनेथ ओ मे ” के साथ ही ब्रिटिश गणितज्ञ आइवर ग्राटन – गिनीज अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे एकमात्र भारतीय हैं।
आईआईटी बांबे (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मुम्बई) ने Padmshri Radhacharan Gupta के चुनिंदा शोधपत्रों को “गणितानंद” नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है। भारतीय – वैदिक गणित के इतिहास पर केंद्रित यह पुस्तक गणित के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और शिक्षकों के बीच काफी चर्चित हुई है। इसके साथ ही आईआईटी गाँधीनगर (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गाँधीनगर) उनके सभी शोधपत्रों और किताबों को डिजिटलाइज करने जा रही है।
भारतीय वैदिक गणित के तपस्वी के रूप में ख्यातिलब्ध होने के बाद भी वे बेहद सादगीपूर्ण जीवन जीते रहे। लेखन और शोध के अलावा उनकी कभी दुनिया की किसी चीज में दिलचस्पी नहीं रही। शहर के आयोजनों में शायद ही उन्हें कभी देखा गया हो।
संयोग की बात है कि पिछली साल – 2022 में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी में मंडलायुक्त झाँसी डॉ० अजय शंकर पांडेय जी का बुंदेलखंड की कला, साहित्य, संस्कृति के विकास में अतुलनीय योगदान रहा उनकी अनोखी पहल पर Padmshri Radhacharan Gupta को पर्ल्स ऑफ बुंदेलखंड / बुंदेलखंड के मोती सम्मान देकर एक सार्वजनिक समारोह में सम्मानित किया गया था।
आज 25 जनवरी 2023 को गणतंत्र दिवस 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर उसी बुंदेलखंड के मोती को भारत सरकार ने साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान – पद्मश्री देने की घोषणा करके उनकी साधना को सम्मान दिया है। हम प्रो० राधाचरण गुप्ता जी को पद्मश्री से नवाजे जाने पर बहुत -बहुत बधाई देते हैं और उनकी साधना को नमन करते हैं।
शोध – आलेख
गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज झाँसी’
(युवा बुंदेलखंडी लेखक, सदस्य – बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, सामाजिक कार्यकर्त्ता)