21Veen Sadi Aur Bundeli Bhasha का अध्ययन करें तो रुझान कहीं कम हुआ तो कहीं बिस्तार हुआ है । 21 वीं सदी में ‘बुंदेली’, ‘अवधी’, ‘ब्रजी’, ‘भोजपुरी’ आदि का अहम योगदान रहा है।
संसार की उत्पत्ति के समय से ही ‘कालखंड’ का विशेष महत्त्व रहा है। कालखंड विशेष में संसार के किसी भी क्षेत्र, राज्य या राष्ट्र का सामाजिक – सांस्कृतिक अध्ययन करना सुविधाजनक होता है। काल या समय की सबसे छोटी इकाई ‘सेकेंड’ है और दैनिक जीवन में समय की सबसे ज्यादा प्रयोग की जाने वाली इकाई ‘घंटा’ है। एक दिन-रात में ‘24 घंटे’ होते हैं और 365 दिन का ‘वर्ष’ होता है। इसी प्रकार एक हजार वर्षों के कालखंड को ‘सदी’ या ‘शताब्दी’ कहते हैं।
‘सदी’ किसी भी ज्ञान-विज्ञान की शाखा जैसे – समाज, भाषा, साहित्य और संस्कृति इत्यादि के समग्र अध्ययन की सबसे प्रचलित इकाई है। भारतीय काल-निर्धारण पद्धति या ‘हिन्दू पंचांग’ के अनुसार, विक्रमी संवत २०५७ – २१५७ का कालखंड ‘२१वीं सदी’ के नाम से जाना जाता है और यूरोपीय काल-निर्धारण पद्धति या ‘ग्रेगोरियन कैलेंडर’ के अनुसार, ईस्वी सन 2001 – 2100 का कालखंड ‘21वीं सदी’ के नाम से पहचाना जाता है। 01 जनवरी 2001 ईस्वी से शुरू हुई 21वीं सदी, 31 दिसम्बर 2099 ईस्वी को समाप्त होगी।
जब से संसार में ‘जीवन’ की उत्पत्ति हुई तभी से ‘भाषा’ की भी उत्पत्ति हुई है। भाषा और जीवन का अन्योयाश्रित संबंध है। जीवन का कोई भी क्रियाकलाप या कार्य-व्यवहार बिना भाषा के संपन्न नहीं होता है। चाहे वह भाषा मौखिक भाषा हो, लिखित भाषा हो या फिर सांकेतिक भाषा। लेकिन जीवन के हर कार्य-व्यवहार में भाषा के किसी-न-किसी रूप का प्रयोग होता ही है और अनिवार्यता होना भी चाहिए क्योंकि भाषा के अभाव में जीवन के सुखद या दुःखद रूप की वास्तविक अनुभूत नहीं हो सकती। जीवन की वास्तविक अनुभूति करने के लिए भाषा का प्रयोग हर स्त्री-पुरूष और जीव-जन्तु को करना ही चाहिए।
वर्तमान में हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। हर सदी में किसी समाज और देश विशेष का प्रभुत्व रहा है। जिस प्रकार, 15-16वीं सदी को ‘स्पेन की सदी’, 17-18वीं सदी को ‘फ्रांस की सदी’, 19वीं सदी को ‘ब्रिटेन की सदी’ और 20वीं सदी को ‘अमेरिका की सदी’ के नाम से जाना जाता है। उसी प्रकार, ‘21वीं सदी’ को ‘भारत की सदी’ कहा जा रहा है।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी जी’ ने श्री माता वैष्णो देवी विश्वविद्यालय, कटरा (जम्मू-कश्मीर) के पांचवें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि यह ‘ज्ञान की सदी’ है और जब भी ज्ञान का युग आया है, भारत ने रास्ता दिखाया है।
“भारत 21वीं सदी का नेतृत्व करेगा क्योंकि 21वीं सदी के लिए जिस ऊर्जा की आवश्यकता है, वह ज्ञान है और वह भारत के पास है। भारत में 800 मिलियन युवा शक्ति है, जो 35 वर्ष से कम है। हर युवा का सपना देश के लिए प्रगति की कहानी बन सकता है।”
वहीं आई०बी०एम० – इंस्टिट्यूट फॉर बिजनेस वेल्यू की रिपोर्ट ‘इंडियन सेंचुरी’ के अनुसार –“भारत एक तेजी से बदलने वाली अर्थव्यवस्था है। आने वाले वर्षों में भारत को सबसे अधिक उन्नति करने वाले देशों में शामिल किया गया है।’ आजादी के बाद हमारे भारत देश ने विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति की है। जैसे – सामाजिक-अर्थव्यवस्था में प्रगति, वैज्ञानिक आविष्कार, सांस्कृतिक रूप में समृद्धि, शिक्षा के क्षेत्र में विकास आदि कई क्षेत्र हैं, जिनमें अब हम आगे बढ़ रहे हैं।”²
21वीं सदी में भारत ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। ज्ञान-विज्ञान की इस प्रगति में भारतीय भाषाओं ने उल्लेखनीय भूमिका निभायी है। इस सदी में भारत की राजभाषा और देश की प्रतिनिधि भाषा ‘हिन्दी’ के वर्चस्व के कारण एक तरफ जहाँ सैकड़ों क्षेत्रीय भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ विलुप्त हो गईं और सैकड़ों क्षेत्रीय भाषाएँ विलुप्ति की कगार पर हैं तो वहीं दूसरी तरह गिनी-चुनी क्षेत्रीय भाषाओं ने ज्ञान-विज्ञान के प्रचार-प्रसार में हस्तक्षेप करके अपनी अनोखी पहचान बनायी है। ‘बुंदेली’ भाषा उन्हीं गिनी-चुनी क्षेत्रीय भाषाओं में से एक है, जिन्होंने अपनी अनोखी पहचान बनायी है।
21वीं सदी में ‘हिन्दी’ विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बनी है। ‘हिन्दी’ भारत देश की प्रतिनिधि भाषा है इसलिए इसे ‘भारती भाषा’ के नाम से भी पुकारा जाए और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। ‘हिन्दी’ को विश्व की प्रमुख भाषाओं में से एक भाषा बनाने में इसकी सहयोगी भाषाओं जैसे – ‘बुंदेली’, ‘अवधी’, ‘ब्रजी’, ‘भोजपुरी’ आदि का अहम योगदान रहा है।
भारत की प्रतिनिधि भाषा ‘हिन्दी’ की सहयोगी भाषाएँ विश्व स्तर पर अस्तित्व बनाने के लिए संघर्ष कर रहीं हैं। इन सहयोगी भाषाओं का संघर्ष तभी सफल होगा जब इन्हें देश के ‘संविधान’ (जिसे हम ‘भारत विधान’ नाम से पुकारते हैं) की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा और सरकारी संरक्षण प्राप्त होगा। इसके साथ ही जब सयुंक्त राष्ट्र संघ एवं यूनेस्को जैसे अंर्तराष्ट्रीय संगठन ‘हिन्दी’ और उसकी सहयोगी भाषाओं को सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में अधिकृत करेंगे और उनके विकास हेतु योजनाओं बनाकर उनका सफल क्रियान्वयन कराएँगे।
संदर्भ –
डॉ० आरती दुबे, बुंदेली साहित्य का इतिहास, साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल, सन 2011, पृष्ठ 186
डॉ० आरती दुबे, बुंदेली साहित्य का इतिहास, साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल, सन 2011, पृष्ठ 187
डॉ० कामिनी, बजीर की गारियों में लोकरंजन एवं समसामयिक बुंदेलखंड़, बुंदेली झलक, 28 फरवरी 2022
डॉ० रंजना मिश्रा, बुन्देलखण्ड : सांस्कृतिक वैभव, अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली, संस्करण 2016, पृष्ठ 71, 63, 65, 32, 72, 80, 80, 80, 80, 32, 36, 74, 32